Saturday, June 12, 2010




सरल कितना
तरल कितना
  मदिर कितना  
मधुर कितना 
 गंगा की एक नीली लहर सा
आवारा हवा सा
ना मुझ सा ना तुमसा
फिर से कहूं
बादल  सा
सूरज सा 
फूल  सा
एक मीठी भूल सा 
सहज कितना
सरल कितना
   फिर से कहूं....

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