जब स्वप्न हर सिँगार के फूलो की तरह झर जाते हैँ और अन्तहीन इच्छाओं का अन्त हो जाता है , प्रकाश का सागर एकाएक निगल लेता है मुझे मेरी समस्त वासनाओँ के साथ मै पुनः जन्मता हूँ बोधिसत्व बन कर
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